Tuesday, January 18, 2011

सरफ़रोशी की तमन्ना ...

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,

देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है,

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,

हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है


(ऐ वतन,) करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,

देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है


रहबरे राहे मुहब्बत, रह न जाना राह में

लज्जते-सेहरा न वर्दी दूरिए-मंजिल में है


अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़

एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है ।


ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,

अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,

आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-कातिल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,

और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर,

खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


हाथ जिन में हो जुनून कटते नही तलवार से,

सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से,

और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,

जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम.

जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


यूँ खड़ा मकतल में कातिल कह रहा है बार-बार,

क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,

होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें कोई रोको ना आज

दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है


वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून

तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है

- बिस्मिल आजिमाबादी

Saturday, February 20, 2010

रूठे राम को मनाओ

पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा भगवान राम को भूल गई, इससे ऐसा सियासी भूकंप आया कि उनकी सरकार बनाने की इच्छा का किला ढ़ह गया और पूरी भाजपा शरणार्थियों की तरह तंबुओं में रहने को मजबूर हो गई। महंगाई, आतंकवाद बेरोजगारी और भष्ट्राचार जैसे चार मजबूत मुद्दों की नींव भी भाजपा के किले को न बचा पाई।

कहते हैं भगवान से किसी काम के सफल होने की मान लो और उसे पूरा न करोंं तो भगवान रूठ जाते है। कुछ ऐसी ही हालत भाजपा की भी है, सरकार बनाने के लिए भगवान राम से बड़ी मिन्नतें मांगी और जब सरकार बन गई तो भूल गए। अब भगवान राम भाजपा से रूठे है, उन्हें मनाना हैं तो उनके भक्तों को खुश करना होगा। लेकिन इस बार राम भक्त भी भाजपा को अच्छी तरह से जान गए हैं, उनका कहना हैं भगवान राम के नाम पर सियासत से हम दुखी हैं, राम तो हमारें दिलों में हंै, पर शायद भाजपा के दिल में नहीं तभी तो वे बार-बार राम को मंदिर में देखते हैं।

आपका समय अच्छा चल रहा हो या बुरा भगवान का नाम लेना नहीं छोडऩा चाहिए, पर भाजपा इस बात को भूल गई और अच्छे समय में राम भजन के बजाए सियासी भजन शुरू कर दिए। लेकिन जब तंबुओं में रहकर भाजपा ने जब अपनी हार का विश्लेषण किया तो उन्हें राम याद आए...और फिर राम मंदिर की बात रख दी।

भाजपा को एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो अपना जीवन और जान देश के लिए न्यौछावर कर दे। कांग्रेस में तो शहिदों का इतिहास रहा है, महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने देश के लिए अपनी जान दे दी। भाजपा में केवल अटलजी ही ऐसी शख्सियत है, जिन्होंने देश के लिए अपना जीवन लगा दिया, न की पार्टी के लिए और तभी वे प्रधानमंत्री बने। देश पार्टी से बढ़कर है...पार्टी देश से नहीं...। लेकिन आज की भाजपा में तो पार्टी के लिए जीवन लगाने वाले ही हावी है...तभी तो हार गए...।

तो राम के नाम पर सियासत करना बंद किजीए और सच्चे दिल से जनता की सेवा किजीए, राम प्रसन्न होंगे और भाजपा को उद्धार होगा। जब भी मैं ऐसी सियासत से छटपटा कर अपने दोस्तों से इस बारे में बात करता हूं तो वे मुझे मुन्नवर राना की यह शेर बोल कर चुप करा देते है...

सियासत की गुफ्तगु मत किजीए, अच्छा नहीं लगता...
रफू पर फिर रफू मत किजीए, अच्छा नहीं लगता...

Friday, January 8, 2010

3 इडियट्स...


आखिर देख ही ली वो फिल्म... सबसे बड़ी तारिफ सुनी और जा पहुंचे...लेकिन उसमें हमें अपना अक्स नजर आया। हम सभी के दिल में बचपन से कुछ बनने की ख्वाहिश होती है। कुछ की पूरी होती है और कुछ की नहीं...लेकिन जिनकी पूरी होती भी है तो वे ऐसी रेस में लग जाते है जिसमें कोई फस्र्ट आ ही नहीं सकता...क्योंकि यह रेस से तब से शुरू है जब से भारतीय शिक्षा पद्धति का निर्माण हुआ।


खबर आई कि मुंबई के एक कॉलेज में रेगिंग की घटना हुई, इस रेगिंग के पीछे 3 इडियट्स का नाम सामने आया। सरकार ने तुरंत अधिकारियों को इस फिल्म को देखने का आदेश दिया...और कहा कि अगर कॉलेज में हुई रेगिंग और फिल्म में दिखाई रेगिंग समान निकली तो कार्रवाही होगी...मगर उसी दिन मुंबई में तीन बच्चों ने आत्महत्या कर ली थी, एक डांसर बच्ची को उसके माता-पिता ने शो में नांचने की अनुमति नहीं दी, तो दूसरे दो बच्चों ने परीक्षा में फेल होने की वजह से हताश होकर जान दे दी। वहां सरकार ने कुछ नहीं कहा...उन बच्चों की आत्महत्या का जिम्मेदार कौन था...शायद उस डांसर बच्ची की ख्वाहिश या उन दो बच्चों पर पड़ा पढ़ाई का बोझ। क्या पढ़ाई में अव्वल आना इतना जरूरी है...रेंचो ने जो कहा वह सब सामने आ गया...बच्चों को वेल एज्युकेट नहीं, वेल ट्रेंड बनाया जा रहा है। पिछले तीन दिनों में अकेले मुंबई में पढ़ाई के बोझ से आत्महत्या करने वाले बच्चों की संख्या दस तक जा पहुंची है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में रोज कितने ही बच्चे अपनी ख्वाहिशों को घोंटकर पढ़ाई के बोझ तले मौत को गले लगाते होंगे।


दुनिया ने किताबें बनाई है.... किताबों ने दुनिया नहीं...दुनिया बदलती हैं...लेकिन किताबों के शब्द नहीं बदलते...वें इतिहास हो जाती है...कोई कितना कहे कि किताबों से ही सबसे ज्यादा ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है....तो यह शायद बेवकूफी होगी। क्या बच्चों को यह भी किताबों के जरीए पढ़ाया जाए कि माता-पिता का आदर कैसे करना॥फ्रिज की बॉटल में पानी खत्म हो जाए तो कैसे भरना॥कैसे बात करना..। रटंत विद्या से इस दुनिया में कुछ नहीं होता...व्यवहारिक ज्ञान किताबों से भी ज्यादा महत्पूर्ण है और रहेगा। मेरे कुछ दोस्त भी किताबों को ऐसे रट लेते थे कि, प्रश्न पूछने पर किताब के पेज नंबर सहित वें जवाब देते। हमेशा अव्वल आते...लेकिन वे दुनिया से कटे हुए थे...दुनिया में क्या चल रहा है...कौन सा नया कंप्यूटर आया है...नई फिल्म आई है उन्हें नहीं पता होता..पर ऐसा जीना भी क्या जीना कि हम पढ़ाई को किसी बोझा ढोए गधे की तरह लिए घूमते रहे।


कई लोग कहते है कि शिक्षक ही हमारा भविष्य बनाते है...ऐसा कहना भी पूर्ण सत्य नहीं..शिक्षक केवल विद्यार्थियों को ज्ञान दे सकते है...ऐसा नहीं कि वे उन्हें कुछ बना सके, ऐसा होता तो हमारी क्लास का हर बच्चा किसी आईआईटी कॉलेज में बैठा पढ़ाई कर रहा होता। आज मैं यहां अखबार के दफ्तर में बैठकर ब्लॉग लिख रहा हूं और मेरा सहपाठी दोस्त एक मोबाइल कंपनी में इंजीनियर का काम कर रहा है। हमारी क्लास से सभी अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे है। हम सब में कुछ अलग था। किसी को इंजीनियर बनना था तो किसी को डॉक्टर तो किसी को साइंटिस्ट...और मुझे पत्रकार...तो बना गया। सभी बच्चों के अंदर एक प्रतिभा होती है और उस काम को करने में उन्हे खुशी मिलती है...अगर उसे बढ़ावा मिले तो वो बच्चा एक दिन आसमान की बुलंदिया छूऐगा। हमारे देश में एक भेड़ चाल वाली कुप्रथा है...पडौसी शर्मा जी के बेटे ने इंजीनियरिंग किया है तो हमारा बच्चा भी इंजीनियरिंग करेगा और उससे अच्छे कॉलेज में। इस भेड़ चाल में बच्चे के मन की ख्वाहिशें कही खो जाती है और वह लग जाता है...खुद को पापा-मम्मी का इंजीनियर बेटा या बेटी बनाने में। ऐसा इंजीनियर जो किसी टूटी हुई मशीन को तो सुधार सकता है...मगर अपने टूटे हुए सपनों को नहीं...

Wednesday, January 6, 2010

जांच चल रही है...


इस देश में जांच करने की बड़ी चमत्कारी विधा है।
आपने कहा कि मैंने ये अपनी आखों से देखा है, तो वे अपकी आखों की जांच कर पता लगाने की कोशिश करेंगे की जिससे देखा गया है, वे आखें ही थी।

Sunday, December 20, 2009

दोस्ती

दोस्ती जब किसी से की जाये
दुश्मनों की भी राये ली जाये।
मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में,
अब कहाँ जा के साँस ली जाये।
बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ,
ये नदी कैसे पार की जाये।
मेरे माज़ी के ज़ख़्म भरने लगे,
आज फिर कोई भूल की जाए
बोतलें खोल के तो पी बरसों,
आज दिल खोल के भी पी जाये।
राहत इन्दौरी

अख़बार

मस्जिदों के सहन तक जाना बहुत दुश्वार था
देर से निकला तो मेरे रास्ते में दार था

अपने ही फैलाओ के नशे में खोया था दरख़्त,
और हर मसूम टहनी पर फलों का बार था

देखते ही देखते शहरों की रौनक़ बन गया,
कल यही चेहरा था जो हर आईने पे बार था

सब के दुख सुख़ उस के चेहरे पे लिखे पाये गये,
आदमी क्या था हमारे शहर का अख़बार था

अब मोहल्ले भर के दरवाज़ों पे दस्तक है नसीब,
एक ज़माना था के जब मैं भी बहुत ख़ुद्दार था

काग़ज़ों की सब सियाही बारिशों में धुल गई,
हम ने जो सोचा तेरे बारे में सब बेकार था

राहत इन्दौरी