Saturday, February 20, 2010

रूठे राम को मनाओ

पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा भगवान राम को भूल गई, इससे ऐसा सियासी भूकंप आया कि उनकी सरकार बनाने की इच्छा का किला ढ़ह गया और पूरी भाजपा शरणार्थियों की तरह तंबुओं में रहने को मजबूर हो गई। महंगाई, आतंकवाद बेरोजगारी और भष्ट्राचार जैसे चार मजबूत मुद्दों की नींव भी भाजपा के किले को न बचा पाई।

कहते हैं भगवान से किसी काम के सफल होने की मान लो और उसे पूरा न करोंं तो भगवान रूठ जाते है। कुछ ऐसी ही हालत भाजपा की भी है, सरकार बनाने के लिए भगवान राम से बड़ी मिन्नतें मांगी और जब सरकार बन गई तो भूल गए। अब भगवान राम भाजपा से रूठे है, उन्हें मनाना हैं तो उनके भक्तों को खुश करना होगा। लेकिन इस बार राम भक्त भी भाजपा को अच्छी तरह से जान गए हैं, उनका कहना हैं भगवान राम के नाम पर सियासत से हम दुखी हैं, राम तो हमारें दिलों में हंै, पर शायद भाजपा के दिल में नहीं तभी तो वे बार-बार राम को मंदिर में देखते हैं।

आपका समय अच्छा चल रहा हो या बुरा भगवान का नाम लेना नहीं छोडऩा चाहिए, पर भाजपा इस बात को भूल गई और अच्छे समय में राम भजन के बजाए सियासी भजन शुरू कर दिए। लेकिन जब तंबुओं में रहकर भाजपा ने जब अपनी हार का विश्लेषण किया तो उन्हें राम याद आए...और फिर राम मंदिर की बात रख दी।

भाजपा को एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो अपना जीवन और जान देश के लिए न्यौछावर कर दे। कांग्रेस में तो शहिदों का इतिहास रहा है, महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने देश के लिए अपनी जान दे दी। भाजपा में केवल अटलजी ही ऐसी शख्सियत है, जिन्होंने देश के लिए अपना जीवन लगा दिया, न की पार्टी के लिए और तभी वे प्रधानमंत्री बने। देश पार्टी से बढ़कर है...पार्टी देश से नहीं...। लेकिन आज की भाजपा में तो पार्टी के लिए जीवन लगाने वाले ही हावी है...तभी तो हार गए...।

तो राम के नाम पर सियासत करना बंद किजीए और सच्चे दिल से जनता की सेवा किजीए, राम प्रसन्न होंगे और भाजपा को उद्धार होगा। जब भी मैं ऐसी सियासत से छटपटा कर अपने दोस्तों से इस बारे में बात करता हूं तो वे मुझे मुन्नवर राना की यह शेर बोल कर चुप करा देते है...

सियासत की गुफ्तगु मत किजीए, अच्छा नहीं लगता...
रफू पर फिर रफू मत किजीए, अच्छा नहीं लगता...