Friday, March 18, 2011
Tuesday, January 18, 2011
सरफ़रोशी की तमन्ना ...
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है,
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ए आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
(ऐ वतन,) करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
रहबरे राहे मुहब्बत, रह न जाना राह में
लज्जते-सेहरा न वर्दी दूरिए-मंजिल में है
अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़
एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है ।
ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूचा-ए-कातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर,
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर,
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हाथ जिन में हो जुनून कटते नही तलवार से,
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से,
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम.
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
यूँ खड़ा मकतल में कातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब,
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें कोई रोको ना आज
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है,
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए कातिल में है
Saturday, February 20, 2010
रूठे राम को मनाओ
कहते हैं भगवान से किसी काम के सफल होने की मान लो और उसे पूरा न करोंं तो भगवान रूठ जाते है। कुछ ऐसी ही हालत भाजपा की भी है, सरकार बनाने के लिए भगवान राम से बड़ी मिन्नतें मांगी और जब सरकार बन गई तो भूल गए। अब भगवान राम भाजपा से रूठे है, उन्हें मनाना हैं तो उनके भक्तों को खुश करना होगा। लेकिन इस बार राम भक्त भी भाजपा को अच्छी तरह से जान गए हैं, उनका कहना हैं भगवान राम के नाम पर सियासत से हम दुखी हैं, राम तो हमारें दिलों में हंै, पर शायद भाजपा के दिल में नहीं तभी तो वे बार-बार राम को मंदिर में देखते हैं।
आपका समय अच्छा चल रहा हो या बुरा भगवान का नाम लेना नहीं छोडऩा चाहिए, पर भाजपा इस बात को भूल गई और अच्छे समय में राम भजन के बजाए सियासी भजन शुरू कर दिए। लेकिन जब तंबुओं में रहकर भाजपा ने जब अपनी हार का विश्लेषण किया तो उन्हें राम याद आए...और फिर राम मंदिर की बात रख दी।
भाजपा को एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो अपना जीवन और जान देश के लिए न्यौछावर कर दे। कांग्रेस में तो शहिदों का इतिहास रहा है, महात्मा गांधी, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने देश के लिए अपनी जान दे दी। भाजपा में केवल अटलजी ही ऐसी शख्सियत है, जिन्होंने देश के लिए अपना जीवन लगा दिया, न की पार्टी के लिए और तभी वे प्रधानमंत्री बने। देश पार्टी से बढ़कर है...पार्टी देश से नहीं...। लेकिन आज की भाजपा में तो पार्टी के लिए जीवन लगाने वाले ही हावी है...तभी तो हार गए...।
तो राम के नाम पर सियासत करना बंद किजीए और सच्चे दिल से जनता की सेवा किजीए, राम प्रसन्न होंगे और भाजपा को उद्धार होगा। जब भी मैं ऐसी सियासत से छटपटा कर अपने दोस्तों से इस बारे में बात करता हूं तो वे मुझे मुन्नवर राना की यह शेर बोल कर चुप करा देते है...
सियासत की गुफ्तगु मत किजीए, अच्छा नहीं लगता...
रफू पर फिर रफू मत किजीए, अच्छा नहीं लगता...
Friday, January 8, 2010
3 इडियट्स...
Wednesday, January 6, 2010
जांच चल रही है...
Sunday, December 20, 2009
दोस्ती
दुश्मनों की भी राये ली जाये।
मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में,
अब कहाँ जा के साँस ली जाये।
बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ,
ये नदी कैसे पार की जाये।
मेरे माज़ी के ज़ख़्म भरने लगे,
आज फिर कोई भूल की जाए
बोतलें खोल के तो पी बरसों,
आज दिल खोल के भी पी जाये।
राहत इन्दौरी
अख़बार
देर से निकला तो मेरे रास्ते में दार था
अपने ही फैलाओ के नशे में खोया था दरख़्त,
और हर मसूम टहनी पर फलों का बार था
देखते ही देखते शहरों की रौनक़ बन गया,
कल यही चेहरा था जो हर आईने पे बार था
सब के दुख सुख़ उस के चेहरे पे लिखे पाये गये,
आदमी क्या था हमारे शहर का अख़बार था
अब मोहल्ले भर के दरवाज़ों पे दस्तक है नसीब,
एक ज़माना था के जब मैं भी बहुत ख़ुद्दार था
काग़ज़ों की सब सियाही बारिशों में धुल गई,
हम ने जो सोचा तेरे बारे में सब बेकार था
राहत इन्दौरी