Friday, January 8, 2010

3 इडियट्स...


आखिर देख ही ली वो फिल्म... सबसे बड़ी तारिफ सुनी और जा पहुंचे...लेकिन उसमें हमें अपना अक्स नजर आया। हम सभी के दिल में बचपन से कुछ बनने की ख्वाहिश होती है। कुछ की पूरी होती है और कुछ की नहीं...लेकिन जिनकी पूरी होती भी है तो वे ऐसी रेस में लग जाते है जिसमें कोई फस्र्ट आ ही नहीं सकता...क्योंकि यह रेस से तब से शुरू है जब से भारतीय शिक्षा पद्धति का निर्माण हुआ।


खबर आई कि मुंबई के एक कॉलेज में रेगिंग की घटना हुई, इस रेगिंग के पीछे 3 इडियट्स का नाम सामने आया। सरकार ने तुरंत अधिकारियों को इस फिल्म को देखने का आदेश दिया...और कहा कि अगर कॉलेज में हुई रेगिंग और फिल्म में दिखाई रेगिंग समान निकली तो कार्रवाही होगी...मगर उसी दिन मुंबई में तीन बच्चों ने आत्महत्या कर ली थी, एक डांसर बच्ची को उसके माता-पिता ने शो में नांचने की अनुमति नहीं दी, तो दूसरे दो बच्चों ने परीक्षा में फेल होने की वजह से हताश होकर जान दे दी। वहां सरकार ने कुछ नहीं कहा...उन बच्चों की आत्महत्या का जिम्मेदार कौन था...शायद उस डांसर बच्ची की ख्वाहिश या उन दो बच्चों पर पड़ा पढ़ाई का बोझ। क्या पढ़ाई में अव्वल आना इतना जरूरी है...रेंचो ने जो कहा वह सब सामने आ गया...बच्चों को वेल एज्युकेट नहीं, वेल ट्रेंड बनाया जा रहा है। पिछले तीन दिनों में अकेले मुंबई में पढ़ाई के बोझ से आत्महत्या करने वाले बच्चों की संख्या दस तक जा पहुंची है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में रोज कितने ही बच्चे अपनी ख्वाहिशों को घोंटकर पढ़ाई के बोझ तले मौत को गले लगाते होंगे।


दुनिया ने किताबें बनाई है.... किताबों ने दुनिया नहीं...दुनिया बदलती हैं...लेकिन किताबों के शब्द नहीं बदलते...वें इतिहास हो जाती है...कोई कितना कहे कि किताबों से ही सबसे ज्यादा ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है....तो यह शायद बेवकूफी होगी। क्या बच्चों को यह भी किताबों के जरीए पढ़ाया जाए कि माता-पिता का आदर कैसे करना॥फ्रिज की बॉटल में पानी खत्म हो जाए तो कैसे भरना॥कैसे बात करना..। रटंत विद्या से इस दुनिया में कुछ नहीं होता...व्यवहारिक ज्ञान किताबों से भी ज्यादा महत्पूर्ण है और रहेगा। मेरे कुछ दोस्त भी किताबों को ऐसे रट लेते थे कि, प्रश्न पूछने पर किताब के पेज नंबर सहित वें जवाब देते। हमेशा अव्वल आते...लेकिन वे दुनिया से कटे हुए थे...दुनिया में क्या चल रहा है...कौन सा नया कंप्यूटर आया है...नई फिल्म आई है उन्हें नहीं पता होता..पर ऐसा जीना भी क्या जीना कि हम पढ़ाई को किसी बोझा ढोए गधे की तरह लिए घूमते रहे।


कई लोग कहते है कि शिक्षक ही हमारा भविष्य बनाते है...ऐसा कहना भी पूर्ण सत्य नहीं..शिक्षक केवल विद्यार्थियों को ज्ञान दे सकते है...ऐसा नहीं कि वे उन्हें कुछ बना सके, ऐसा होता तो हमारी क्लास का हर बच्चा किसी आईआईटी कॉलेज में बैठा पढ़ाई कर रहा होता। आज मैं यहां अखबार के दफ्तर में बैठकर ब्लॉग लिख रहा हूं और मेरा सहपाठी दोस्त एक मोबाइल कंपनी में इंजीनियर का काम कर रहा है। हमारी क्लास से सभी अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे है। हम सब में कुछ अलग था। किसी को इंजीनियर बनना था तो किसी को डॉक्टर तो किसी को साइंटिस्ट...और मुझे पत्रकार...तो बना गया। सभी बच्चों के अंदर एक प्रतिभा होती है और उस काम को करने में उन्हे खुशी मिलती है...अगर उसे बढ़ावा मिले तो वो बच्चा एक दिन आसमान की बुलंदिया छूऐगा। हमारे देश में एक भेड़ चाल वाली कुप्रथा है...पडौसी शर्मा जी के बेटे ने इंजीनियरिंग किया है तो हमारा बच्चा भी इंजीनियरिंग करेगा और उससे अच्छे कॉलेज में। इस भेड़ चाल में बच्चे के मन की ख्वाहिशें कही खो जाती है और वह लग जाता है...खुद को पापा-मम्मी का इंजीनियर बेटा या बेटी बनाने में। ऐसा इंजीनियर जो किसी टूटी हुई मशीन को तो सुधार सकता है...मगर अपने टूटे हुए सपनों को नहीं...

1 comment:

  1. सच जीवन सफल हो इससे ज्यादा जरूरी है कि जीवन सार्थक हो, सफल बहुत लोग होते हैं लेकिन जीवन बहुत कम लोगों का सार्थक होता है।

    ReplyDelete