Sunday, December 20, 2009

दोस्ती

दोस्ती जब किसी से की जाये
दुश्मनों की भी राये ली जाये।
मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में,
अब कहाँ जा के साँस ली जाये।
बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ,
ये नदी कैसे पार की जाये।
मेरे माज़ी के ज़ख़्म भरने लगे,
आज फिर कोई भूल की जाए
बोतलें खोल के तो पी बरसों,
आज दिल खोल के भी पी जाये।
राहत इन्दौरी

अख़बार

मस्जिदों के सहन तक जाना बहुत दुश्वार था
देर से निकला तो मेरे रास्ते में दार था

अपने ही फैलाओ के नशे में खोया था दरख़्त,
और हर मसूम टहनी पर फलों का बार था

देखते ही देखते शहरों की रौनक़ बन गया,
कल यही चेहरा था जो हर आईने पे बार था

सब के दुख सुख़ उस के चेहरे पे लिखे पाये गये,
आदमी क्या था हमारे शहर का अख़बार था

अब मोहल्ले भर के दरवाज़ों पे दस्तक है नसीब,
एक ज़माना था के जब मैं भी बहुत ख़ुद्दार था

काग़ज़ों की सब सियाही बारिशों में धुल गई,
हम ने जो सोचा तेरे बारे में सब बेकार था

राहत इन्दौरी

Thursday, December 3, 2009

जो बीत गई सो बात गई/ हरिवंशराय बच्चन

जीवन में एक सितारा थामाना वह बेहद प्यारा थावह डूब गया तो डूब गयाअंबर के आंगन को देखोकितने इसके तारे टूटेकितने इसके प्यारे छूटेजो छूट गये फ़िर कहां मिलेपर बोलो टूटे तारों परकब अंबर शोक मनाता हैजो बीत गई सो बात गई
जीवन में वह था एक कुसुमथे उस पर नित्य निछावर तुमवह सूख गया तो सूख गयामधुबन की छाती को देखोसूखी कितनी इसकी कलियांमुरझाईं कितनी वल्लरियांजो मुरझाईं फ़िर कहां खिलीपर बोलो सूखे फ़ूलों परकब मधुबन शोर मचाता हैजो बीत गई सो बात गई
जीवन में मधु का प्याला थातुमने तन मन दे डाला थावह टूट गया तो टूट गयामदिरालय का आंगन देखोकितने प्याले हिल जाते हैंगिर मिट्टी में मिल जाते हैंजो गिरते हैं कब उठते हैंपर बोलो टूटे प्यालों परकब मदिरालय पछताता हैजो बीत गई सो बात गई
मृदु मिट्टी के बने हुए हैंमधु घट फ़ूटा ही करते हैंलघु जीवन ले कर आए हैंप्याले टूटा ही करते हैंफिर भी मदिरालय के अन्दरमधु के घट हैं मधु प्याले हैंजो मादकता के मारे हैंवे मधु लूटा ही करते हैंवह कच्चा पीने वाला हैजिसकी ममता घट प्यालों परजो सच्चे मधु से जला हुआकब रोता है चिल्लाता हैजो बीत गई सो बात गई